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अलिफ लैला की प्रेम कहानी-22

 

जब उसे मालूम हुआ कि वहाँ के बादशाह को ऐसा भयंकर कुष्ठ रोग है जो किसी हकीम के इलाज से ठीक नहीं हुआ है, तो उसने नगर में अपने आगमन की सूचना उसके पास भिजवाई और उससे भेंट करने के लिए स्वयं ही प्रार्थना की। बादशाह ने अनुमति दे दी तो वह उसके सामने पहुँचा और विधिपूर्वक दंडवत प्रणाम करके कहा, 'मैने सुना है कि नगर के सभी हकीम आप का इलाज कर चुके और कोई लाभ न हुआ। यदि आप आज्ञा करें तो मैं खाने या लगाने की दवा दिए बगैर ही आपका रोग दूर कर दूँ।' बादशाह ने कहा, 'मैं दवाओं से ऊब चुका हूँ। अगर तुम बगैर दवा के मुझे अच्छा करोगे तो मैं तुम्हें बहुत पारितोषिक दूँगा।' दूबाँ ने कहा, 'भगवान की दया से मैं आप को बगैर दवा के ठीक कर दूँगा। मैं कल ही से चिकित्सा आरंभ कर दूँगा।'

 

हकीम दूबाँ बादशाह से विदा होकर अपने निवास स्थान पर आया। उसी दिन उसने कोढ़ की दवाओं से निर्मित एक गेंद और उसी प्रकार एक लंबा बल्ला बनवाया और दूसरे दिन बादशाह को यह चीजें देकर कहा कि आप घुड़सवारी की गेंदबाजी (पोलो) खेलें और इस गेंद-बल्ले का प्रयोग करें। बादशाह उसके कहने के अनुसार खेल के मैदान में गया। हकीम ने कहा, 'यह औषधियों का बना गेंद-बल्ला है। आप को जब पसीना आएगा तो येऔषधियाँ आप के शरीर में प्रवेश करने लगेंगी। जब आपको काफी पसीना आ जाए और औषधियाँ भली प्रकार आप के शरीर में प्रविष्ट हो जाएँ तो आप गर्म पानी से स्नान करें। फिर आपके शरीर में मेरे दिए हुए कई गुणकारी औषधियों के तेलों की मालिश होगी। मालिश के बाद आप सो जाएँ। मुझे विश्वास है कि दूसरे दिन उठकर आप स्वयं को नीरोग पाएँगे।'

 

बादशाह यह सुनकर घोड़े पर बैठा और अपने दरबारियों के साथ चौगान (पोलो) खेलने लगा वह एक तरफ से उनकी ओर बल्ले से गेंद फेंकता था और वे दूसरी ओर से उसकी तरफ गेंद फेंकते थे। कई घंटे तक इसी प्रकार खेल होता रहा। गर्मी के कारण बादशाह के सारे शरीर से पसीना टपकने लगा और हकीम की दी हुई गेंद और बल्ले की औषधियाँ उसके शरीर में प्रविष्ट हो गईं। इसके बाद बादशाह ने गर्म पानी से अच्छी तरह मल-मल कर स्नान किया। इसके बाद तेलों की मालिश और दूसरी सारी बातें जो वैद्य ने बताई थीं की गईं। सोने के बाद दूसरे दिन बादशाह उठा तो उसने अपने शरीर को ऐसा नीरोग पाया जैसे उसे कभी कुष्ठ हुआ ही नहीं था।

 

बादशाह को इस चामत्कारिक चिकित्सा से बड़ा आश्चर्य हुआ। वह हँसी-खुशी उत्तमोत्तम वस्त्रालंकार पहन कर दरबार में आ बैठा। दरबारी लोग मौजूद थे ही। कुछ ही देर में हकीम दूबाँ भी आया। उसने देखा कि बादशाह का अंग-अंग कुंदन की तरह दमक रहा है। अपनी चिकित्सा की सफलता पर उसने प्रभु को धन्यवाद दिया और समीप आकर दरबार की रीति के अनुसार सिंहासन को चुंबन दिया। बादशाह ने हकीम को बुलाकर अपने बगल में बिठाया और दरबार के लोगों के सन्मुख हकीम की अत्यधिक प्रशंसा की।

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